ज्वर के लक्षण गुण और भेद और उपचार

ज्वर के लक्षण गुण और भेद और उपचार 



चरक ऋषि कहता है की भुखार में खिलो  के सतु में ज्वर नाशक फलो का रश और सहत और शर्करा मिलाने के तर्पण  पिलावे! चरक ने ज्वर नाशक फल कहा जाता है!
 ज्वर की शांति करने के लिए बकरी के दुध में गुड़ मिला कर पिया ने से ज्वर शांत हो जाता है परन्तु तरुण ज्वर में ये पीने से मानुष मर सकता है!

जीर्ण ज्वर में और कफ क्षीण हो जाने पर पिया होव दुध अमृत के सामान होता है!
और वो ही दुध तरुण ज्वर में पीने से मर डालता है!
  तरुण ज्वर वाला दोबारा भोजन न करे तीक्ष्ण और भारी नशे पदार्त का कदाचित भी उपयोग  न करे!
कभी भी रोगी को पुरा तृप्त न करे ( पानी से ) क्योकि ऐश करने से दोबारा ज्वर आ जाता है!

ज्वर विमुक्ति के लक्षण -

पसीना आवे भ्रम ,तृषा,कम्पन , दस्त होना पेट का बोलना सरीर से दुर्घनद आना , दहे का हल्का होना  महक में छालेहोना , नेत्र , नाशिक अधि इन्द्रियों का उतम होना , पीड़ा रहित हो जाना छीके आना भोजन करने की ऐछ करना मस्तक हल्का होना ये ज्वर मुक्ति के लक्षण है!
ज्वर मुक्त प्राणी को स्नान करने पर ज्वर दोबारा आ सकता है! इशलिये जब तक बल वर्ण,जठराग्नि ,और दहे अपने पूर्व प्रक्रति पर नही आ जाते तब तक स्नान नही करना चईये!

वातज्वर के लक्षण -

बहोत जम्भईका आना श्रम से पहले ही होती है!
कंठ मुख  का सुकना,निंद्रा न आवे , छीकन  न आवे ,दहे में रूखी , सभी अंगो में पीड़ा , मुख का स्वाद चला जाता है मॉल बाँदा होव हो अफारा और जम्भई का आना वात ज्वर के लक्षण है !

वात रोग की चिकित्सा -

अमाशय में स्थित दोष जठर अग्नि को शांत कर और आम से मलकर रश रक्त वाहिनी नाड़ियो को बंद  करके ज्वर रोग को प्रकट करता है!
वातज्वर का टाइम पीरियड छे दिन का होता है उष के बाद ही भोजन आदिकरना चईये!
वात ज्वर में सातवे दिन और कफ ज्वर में बारवे दिन औषदि देनी चईये परन्तु इतने दिन तक रोगी कैसे सहन कर पाए गा!'

उपचार -
वेलगिरी , कम्भारी, पाढ़ल, अरलू, अरनी , गोखरू , छोटी कटेरी ,बड़ी कटेरी ,पृष्ठपर्णी, शालपणी,रास्त्रआ , पीपल पीपरामूल , कुठ , सोंठ, चिरायाता ,खरेठी,गिलोय ,नेत्रवाला ,दाख ,जवासा,और सतावर ,इनका कथ करके पीने से उपद्रव सहित वात ज्वर दूर होता है!

लेप - पलाश (ढाक) के , बेर के , और नीम के नरम पते को कांजी में या खटाई में पीश कर लेप लगाने से ज्वर डोर होता है !

जलधारा योग -

रोगी को सीधा लिटा कर उष की नाभि के ऊपर तांबे का या काशे का पात्र रख कर उश में शीतल जल की धारा डाले,तो धार की तरावट से ज्वर दूर होता है
कफ ज्वर के लक्षण -


अंगो का गिला होना हल्का ज्वर ,मुखका मीठा होना ,मल मूत्र सफ़ेद होना ,भूखलगने पर भी अन्न अच्छान लगे अंग भारी होना सर्दि लगना, बहोत ज्यादानींद आना ,नाकसे पानी गिरना , अरुचि ,खासी और आँख सफ़ेद हो जाना ,मुख से भी पानी गिरता है ,गर्मी लगना ,मंदाग्नि होना , बार -बार पेशाब जाना ,कफ ज्वर के लक्षण है !

पीपल का बारीक़ चूर्ण ,कर सहेतमें मिला कर चाटने से स्वास ,खासी ,ज्वर हिचकी , को डोर करता है!

Comments