जल के आयुर्वेदिक भेद,लक्षण और गुण

              जल के आयुर्वेदिक भेद,लक्षण और गुण  

ऋषि मुनियों ने दिव्य और भौम इन 2 भेदों से जल को  डिवाइड किया है दिव्य जल चार प्रकार का होता है!

 
धारा जल- धारा रूप से गिरे जल को  छान लें क्योंकि वह धुली हुई शीला और चूने के रूप में होता है!इस चुने हुए जल को धारा जल कहा जाता है




गुण- धारा जल  त्रिदोष नाशक  गुप्त रस हल्का शीतल रसायन बलकारी तृप्ति करता जीवन पाचन बुद्धि बढ़ाने वाला मूर्छा  तंद्रा दाहा शर्म को दूर करता है परंतु यह गुण शरद ऋतु ऋतु में ही वर्षा ऋतु यह गुण बहुत ही अल्प मात्रा में होते हैं
धारा जल के भेद- हमारे वेदों में धारा दो प्रकार की कही गई है एक गंगा की और दूसरा समुंदर की।
गंगाजल और समुद्र जल के लक्षण-
संतों का कथन है कि आकाशगंगा संबंधी जल को मेघो द्वारा अश्विन महीने में वर्षा के रूप में गिराया जाता है उस जल का भक्षण हम सभी को करना चाहिए  लेकिन वर्षा के शुद्ध जल का ही उपयोग करना चाहिए
गंगा जल का परीक्षण-
वेदों में गंगाजल को परीक्षित करने की विधि बताई गई है जो इस प्रकार है सोने के चांदी के अथवा मिट्टी के पात्र में चावल डाल कर ऊपर तक भर दें 1 हफ्ते के बाद पात्र की चावल का परीक्षण करें यदि वह चावल बिगड़े नहीं है और ना ही उनका रंग पलटा हुआ है तो उसे गंगाजल मानना चाहिए यह सर्वदोषनाशक है और यदि चावल सड़ जाए तो ऐसे जल को  खारा जल मानना चाहिए  सुंदर का जल सर्व दोष करता है खारा और बल का नाश करने वाला है परंतु अश्विन महीने में जो समुंदर संबंधी वर्षा का जल है वह गंगाजल के समान माना गया है
वेदो में लिखा है कि अश्विन महीने की वर्षा का ही जल उपयोग करना चाहिए और सभी रितुओं में वर्ष सुंदर का जल सर्व दोष करता है
कारक जल के लक्षण और गुण-
दिव्य पवन बिजली के सहयोग से तड़ित होकर जो जल आकाश से पत्थर के रूप में पड़े अर्थार्थ  ओलों के रूप में पड़े उसको कारक जल कहते हैं। यह जल अमृत के तुल्य है गुण में शीतल , पितहर्त कर्ता और वादी कफ को दूर करने वाला है।
तुषार जल के लक्षण गुण-
गर्मी की वजह से वाष्प के रूप में उड़ने वाला जल तुषार जल कहलाता है। अर्थार्थ जिसको  हम ओस कहते हैं प्राणियों के लिए हितकारी नहीं है परंतु वृक्षों के लिए हितकर हे।
गुण-
कफ जंघा स्तंभताकंठ जठार अग्नि प्रेमह गलगंड रोगों को दूर करता है।
हेम जल के लक्षण और गुण-
बर्फ के पिघलने से जो जल हमें प्राप्त होता है उसको विद्वान लोग हिमचल कहते हैं सभी प्राणियों के लिए हितकारी है तथा वात-पित्त-कफ दूषित नहीं करता।
भोम जल के भेद-
पृथ्वी से निकला हुआ जल भौमजल कहलाता है यह तीन प्रकार का होता है।
जंगल जल के लक्षण -
जिस देश में थोड़ा जल और थोड़े वृक्ष हो तथा प्राणी पित और रुधिर के रोग वाले हो उस देश को जंगल जल देश के नाम से जाना जाता है।
अनूप जल के लक्षण-
 
जिस देश में बहुत जल और बहुत वृक्ष हो  तथा जहां के प्राणी वात पित्त की बीमारी से ग्रसित रहे अनूप जल कहलाताहै।
साधारण देश की जल के लक्षण-
जिस
देश में जंगल और अनूप दोनों जल लक्ष्मण मिलते हो साधारण जल कहलाता है।
जंगल जल नमकीन हल्का पित  हरण करता हे।
 
अनूप जल स्वादिष्ट गाडा भारी कफ कारी  हृदय और अनेक विकार उत्पन्न करता है।
साधारण जल मधुर दीपन शीतल हलक तृप्ति कारी रोचक तृष्णा   त्रिदोष  को समाप्त करता है।
नदी जल के लक्षण गुण-
जिस नदी का वेग तेज हो उसका जल निर्मल होता है धीमे वेग से और काई से ढकी रहने वाली नदी का जल भारी होता है तथा गंदा होता है हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियां जो पत्थरों से टकराती हुई बहती है जैसे गंगा सतलुज सरयू यमुना इनका जल उत्तम माना गया है विंध्याचल पर्वत से निकलने वाली कृष्णा गोदावरी नदी प्राय कुश्ट रोग करती हे।
ओदिदजल-
पृथ्वी को खोदकर या फाड़ कर जो जल नीचे से निकाला जाता है उसको उदित जल बोलते हैं।
इस जल में सभी अच्छे गुणों का समावेश होता है तथा सेहत के लिए भी उत्तम है।
झरने के जल के गुण लक्षण-
पर्वत के ऊपर से जलने वाले जल को झरने का जल कहा जाता है।
झरने का जल जल रुचि कारी  कफ नाशक दीपन
हल्का मधुर वात और पित्त को बढ़ाने वाला होता है।
सारस जल के गुण लक्षण-
जहां नदी पर्वत आदि से रुक कर ठहर जाए उसको सर या झील जल कहते हैं  सारस बलवर्धक तृषा नाशक मधूर हल्का रुचि कारी मल मूत्र को बांधने वाला होता है।
तलाब के जल के गुण के लक्षण-
उत्तम पृथ्वी के मार्ग में बहुत वर्षों के संचित जलाशय को तड़ाग तलाब बोलते हैं। तलाब का जल स्वादिष्ट  कसेला कटु पाखी मल मूत्र का बांधने वाला  रुधिर विकार पित्त और कफ को नष्ट करने वाला होता है।
बावड़ी जल के गुण लक्ष्ण-
जो पत्थर अथवा ईटो से बड़ा कुआं बनाया जाता है और जाने के लिए अनेकों पेडियां हो उसको बावड़ी बोला जाता है।
बावड़ी का जल यदि खारा हो तो पित्तकरता , कफ वात नाशक और मीठा हो तो  कफ करता वात पित्त हरण करता होता है

कुएं के जल के गुण के लक्षण-
पृथ्वी में छोटा सा गोल गड्ढा बनाकर खोदकर तथा चारों ओर से ईटो से पक्का करके जल निकाला जाए तो उसको हुए कूप की संज्ञा दी गई है। कुए का जल यदि मीठा हो तो त्रिदोष नाशक हित करता हल्का होता है।
चोय जलके गुन लक्षण-
जो गड्ढा चारों ओर से पत्थर की शिलाओं से व्याप्त हो तथा जल जिसका नीला हो और उसके ऊपर लता लता छाई हुई हो उसको चोय काजल कहा जाता है ऋषि का कहना है कि यदि यह खुद ना  बनाकर प्राकृत रुप से तैयार हो जाए  उस जल को चोए का जल कहा जाता है।
जठर अग्नि वर्धक कफ हल्का  माधुर होता है।



तेलिया जल के लक्षण-
इसमें सावन के महीने में या वर्षा ऋतु में ही जल उपलब्ध होता है उसको पाल्वल कहते हैं या तेलीया भी कहते हैं।
विकीर जल के लक्षण-
नदी के समीप की पृथ्वी पर जो बालू युक्त है उसमें गड्ढा खोदकर जल को निकालते हैं उस जल विकिर जल कहते हैं यह गुण में शीतल  स्वच्य निर्दोष हलका, स्वादिष्ट पित्तनाशक होता है।
वर्षा के जल के गुण के लक्षण- जो वर्षा काजल शुद्ध है तथा तीन रात्रि के बाद उसको ग्रहण करने से अमृत के समान गुरु प्राप्त होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में नदी का जल ग्रहण नहीं करना , ग्रीषम ऋतु में पतझड़ से कुछ विषेले पत्ती नदी के जल को विषाक्त कर देते हैं। नदी का जल शीत ऋतु में ही पीने के लिए उत्तम माना गया है हेमंत ऋतु में सरोवर झील और तालाब का जल पीना हितकारी है। जल ग्रहण का काल- पृथ्वी संबंधी जल  प्रातः काल में ही ग्रहण करना या  भर लेना चाहिए।
इसका कारण यह है कि जल में मुख्य गुण शीतल और निरमलता लेनी होती है जो कि प्रातः काल में ही होती है बहुत जल पीने से भोजन का  परिपाक नहीं होता और बिल्कुल जो  जल्द ना पिए तो आन नहीं पहुंचता। इसलिए जल को बार बार करके थोड़ा थोड़ा करके ग्रहण करना चाहिए!

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