अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरने उत्पन ओषदि

प्रजापति दक्ष के अनुसार इंद्र की अमृत पीने के समय अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरने से सात 

प्रकार की हरड उत्पन होइ वे सभी इस  प्रकार है हरीतकी, अभियान, प्रतिष्ठा ,कार्यस्थल, 

पूतना, अमृता, हेमवती, चेतकी, शिवा, वस्था, विजया आदि हरड के संस्कृत नाम है 

 हिंदी भाषा में हरड, बंगाल में हरीतकी, मराठी मेहरडा,   कर्नाटक में ऑणिले,  गुजराती में 

हरडे,  फारसी में हलेलज,   और अंग्रेजी में तरमीननेलिया केबुला कहते हैं, हरड वनस्पति 

जाति के वृक्ष का फल है  जिस की उत्पत्ति प्राय पर्वती देशों में होती है दो-दो पत्ते आमने-

सामने 

और मोटे तथा अमरुद के वृक्ष के समान और कोमल तथा लाल रंग के होते हैं इसके फल की 

लंबाई 1 इंच लंबी होती है skin सुखाने से इसके ऊपर छाल सुक्कर खड़ी पांच रेखा हो जाती है 

शुभ यह वृक्ष के ऊपर कच्चा रहता है तब निदान कांटा और धार युक्त होता है

 
विंध्यांचल पर्वत पर विजय नाम की हरड होती है  पूतना और चेत्तकी दो जाति किरण

हिमालय पर्वत को होती है. रोहणी सिंधु देश में होती है विजय नाम की हरण प्रति स्थानक देश

होती है अमृता और अभियान किस कंधा के समीप होती है हरीतकी नामक हरड सौराष्ट्र देश में 

होती है इन सभी को पहचानने के लिए पंडित होने साथ भेद कहे हैं

जो या के समान लंबी हो कर बोर हो जावे उसको विचारण कहते हैं  घीया जो  जो गोल है वह 

रोहणी है   पतली लकीर वाली पूतना है  मोटी रेखा वाली अमृता है  जिसमें पांच रेखा है वह 

अभ्या है सूरन की समान पीली जीवंती है सभी के अलग अलग उपयोग हैं

श्रम रोग में विजय हरण देनी चाहिए  चोट लगने पर रोहिणी का लेप लगाना चाहिए लिप में

पूतना को भी डालें जुलाब में अमृता लेनी चाहिए  नेत्र रोग में अभया उत्तम है जीवनती सर्वरोग

हरण करने वाली है
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चेतकी जाति की हरड  दो प्रकार की होती है  एक सफ़ेद और दूसरी काली कोई हरड खाने में 

दस्त लगाती है कोई सूंघने में कोई छोड़ने में  और कोई देखने मात्र से दस्त को लगा देती है इस 
प्रकार इसमें चार प्रकार की भेदन सकती है जो प्राणी चेतकी नामक हरड के पेड़ के नीचे खड़ा 

होता है उस पशु-पक्षी और मनुष्य को तत्काल दस्त लगते हैं चेतकी हरड़ को प्राणी जब तक 

हाथ में लिए खड़ा रहता है तब तक उस को दस्त लगे रहते हैं यह वृक्ष पहले काबुल में पाई 

जाती थी परंतु अब नष्ट हो चुके हैं  परंतु यह परम उत्तम हितकारी और सुख पूर्व विवेचन 

करने वाली है सात जातियो की हरड में विजय हरड प्रदान है इसका प्रयोग सुख कारी और 

सुलभ है तथा सब रोगों में इसको देना चाहिए हिरण में 5 रस है परंतु लवन रस नहीं है हरड 

पित्त नास करती है कफ का नाश करती है खट्टे रस होने से वादी हरन करती है

 
हरड की मजा में मीठा रस नसों में खट्टा रस डंडी में कटवा और छाल में चरपरा रस होता हे

जो हरण नवीन चिकनी गणगोर और भारी हो तथा जल में गिरने से डूब जाए उत्तम कारी होती 
है जिसका फल वजन में 2 तोले का हो गए तथा दोनों गुण हो उस को श्रेष्ठ जाना जाता है हरड़ 

को चबाकर खाने से अग्नि को बढ़ाते हैं, पीसकर खाने से मल का शोधन होता है, बुनी हुई हरड 

सभी दोषों का नाश करती है

भोजन के साथ सेवन करने से बुद्धि बल और इंद्रियों  प्रकाशित करने वाला है. मल मूत्र और 

और सभी मलो को निकालने वाला है, अनुपान के दोष, तथा वात पित्त और कफ के दोषों को 

भोजन करने के पश्चात सेवन करने से नास होता है

नमक के साथ कफ को, मिश्री के साथ पित्त को, गुड के साथ खाई हुई हरड सब रोगों का नाश 

करती है, वर्षा ऋतु में शिंदे नमक के साथ, शरद ऋतु में मिश्री के साथ , वसंत में शहद के 

साथ, 

हेमंत में सोर्ट के साथ, ग्रीष्म ऋतु मे गुड के साथ, सेवन करना चाहीए
वर्जित

मार्ग चलने से थका, दुर्बल, उपवास आदि  प्रबल धातु वाला, गर्भवती स्त्री ,आदि मनुष्य का

हरड भक्षण निषेध है

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